June 22, 2025

उत्‍तराखंड में 188 हेक्टेयर वनों पर चला दी गई जेसीबी, CAG Report से हुआ चौंकाने वाला खुलासा

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उत्तराखंड में बेशक 72 प्रतिशत से अधिक भूभाग का स्वरूप वन है। इसके चलते विकास की गुंजाइश कम रहती है और वनों पर दबाव उतना ही अधिक बढ़ जाता है। फिर भी विकास बनाम विनाश के बीच सामंजस्य को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट पर गौर करें तो वन भूमि हस्तांतरण से लेकर क्षतिपूरक वनीकरण के कार्यों में बड़े स्तर पर अनदेखी देखने को मिली है।

2014 से 2022 तक वन भूमि से जुड़े विकास कार्यों का किया परीक्षण
कैग ने प्रतिकारक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के तहत वर्ष 2014 से 2022 तक वन भूमि से जुड़े विकास कार्यों का परीक्षण किया। रिपोर्ट में 52 ऐसे प्रकरणों का जिक्र किया गया है, जिसमें मानकों को पूरा किए ही निर्माण कार्य शुरू करा दिए गए। इन मामलों में सिर्फ वन भूमि हस्तांतरण की सिर्फ सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की गई थी। सक्षम अधिकारी की ओर से कार्य शुरू करने की अनुमति न मिलने के बाद भी संबंधित एजेंसियों ने वन भूमि का कटान शुरू कर दिया। गंभीर यह कि वन भूमि के अनधिकृत उपयोग का अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया और इन्हें वन अपराध के रूप में भी दर्ज नहीं किया। इसी तरह एक मामले में प्रभागीय वनाधिकारी ने अपने अधिकार से बाहर जाकर वन हस्तांतरण की अंतिम स्वीकृति प्रदान कर दी गई। यह मामला टौंस (पुरोला) वन प्रभाग से जुड़ा है। यहां 1.03 हेक्टेयर वन भूमि को अनाधिकृत रूप से हस्तांतरित कर दी गई। भूमि को सितंबर 2022 में उत्तरकाशी में हुडोली-विंगडेरा-मल्ला मोटर मार्ग के लिए हस्तांतरित किया गया था। असल में इसकी स्वीकृति केंद्र सरकार को देनी थी। निर्माण एजेंसियों के प्रति वन विभाग का यह प्रेम वन्यजीव शमन योजना में भी समाने आया। जिसमें प्रभागीय वनाधिकारी नरेंद्रनगर ने 22.51 करोड़ रुपए की राशि की मांग उपयोगकर्ता एजेंसी से तब मांगी, जब अंतिम स्वीकृति प्राप्त हो गई। नियमों के अनुसार इसकी मांग सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद और काम शुरू करने से पहले कि जानी थी। कुछ यही स्थिति प्रभागीय वनाधिकारी हरिद्वार कार्यालय में भी सामने आई। यहां 2.08 करोड़ रुपए अंतिम स्वीकृति के बाद मांगे गए। इस रहमदिली का असर यह हुआ कि परीक्षण के दौरान तक भी दोनों मामलों में रकम को जमा नहीं कराया गया था।

वन भूमि हस्तांतरण की स्थिति
वन भूमि हस्तांतरण की स्थिति (2014 से 2022)
कुल प्रकरण, 2144
प्रकरण में शामिल भूमि, 15083 हेक्टेयर
अंतिम स्वीकृति, 679 प्रकरण (3947 हेक्टेयर)
सैद्धांतिक स्वीकृति, 782 प्रकरण (2025.97 हेक्टेयर)
लंबित प्रकरण, 683 प्रकरण (9110.36 हेक्टेयर)
जो पौधे लगाए, उसमें सिर्फ 33 प्रतिशत रहे जिंदा

कैग रिपोर्ट में वन विभाग में वृक्षारोपण की स्याह हकीकत भी हुई उजागर
विधानसभा पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट में क्षतिपूरक वनीकरण की स्याह हकीकत भी उजागर हुई। कैग ने मार्च 2021 में वन विभाग को सौंपी गई वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की रिपोर्ट का भी अवलोकन किया।
रिपोर्ट के अनुसार वृक्षारोपण के क्रम में पौधों की कुल जीविवितता 60 से 65 प्रतिशत होनी चाहिए। वन विभाग के मामले में पाया गया कि वर्ष 2017 से 2020 के बीच जो क्षतिपूरक वनीकरण किया गया है, उसमें से सिर्फ 33.51 प्रतिशत पौधे बच पाए हैं। यह वनीकरण 21.28 हेक्टेयर भूमि पर 22.08 लाख से किया गया था। परीक्षण के दौरान कैग टीम को वन विभाग के कार्मिकों ने बताया कि बड़े क्षेत्र में चीड़ के वृक्षों की उपस्थिति थी। वनीकरण के लिए आवंटित भूमि तीव्र ढाल वाली थी और मिट्टी की गुणवत्ता भी वहां निम्न पाई गई।
यहां किया गया था वनीकरण
पिथौरागढ़, गौच और गणकोट में 9.65 लाख रुपए से 13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण
रुद्रप्रयाग, रामपुर में 8.60 लाख रुपए से 5.60 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण
नैनीताल, ओडवास्केट में 3.83 लाख रुपए से 2.68 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण

यहां वनीकरण में मृदा कार्यों में अनियमितता
नैनीताल में वर्ष 2019 से 2021 के बीच 78.8 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण के लिए मृदा गुणवत्ता बढ़ाने संबंधी कार्य अधूरे छोड़ दिए गए। इसके अलावा अल्मोड़ा में में कोसी पुनर्जीवन योजना में 185 हेक्टेयर भूमि पर मानकों के विपरीत जाकर मृदा कार्य और वृक्षारोपण साथ में कर दिए गए।

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