July 27, 2024

वन नेशन वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट, समर्थन में 32 राजनैतिक दल

नई दिल्ली: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ यानी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

एक देश, एक चुनाव के लिए बनाई गई हाई लेवल कमिटी ने सिफारिश की है कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाएं। इसके लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश भी की गई है। केंद्र सरकार ने एक देश, एक चुनाव को लेकर 2 सितंबर 2023 को एक हाई लेवल कमिटी बनाने का फैसला किया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया और साथ में 7 मेंबर बनाए गए थे। रिपोर्ट में कहा गया कि बीच-बीच में चुनाव कराए जाने से सौहार्द बिगड़ता है। साथ ही आर्थिक विकास, शैक्षणिक क्षेत्र और खर्च पर पर विपरीत असर होता है।

1. कौन-कौन कमिटी में?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया और साथ में 7 मेंबर थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मेंबर में थे। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को चेयरमैन बनाया गया। शाह के अलावा दूसरे सदस्यों में लोकसभा में विरोधी दल के नेता अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद, 15वीं फाइनैंस कमिशन के पूर्व चेयरमैन एन. के. सिंह, लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल सुभाष सी. कश्यप, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और पूर्व चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल स्पेशल इन्वाइटी बनाए गए। लीगल मामलों के सेक्रेटरी एन. चंद्रा हाई लेवल कमेटी के सेक्रेट्री बनाए गए। बाद में अधीर रंजन चौधरी ने मेंबर बनने से इनकार कर दिया था।

2. क्या एकसाथ चुनाव के लिए संविधान संशोधन की जरूरत है?

कमिटी ने कहा है कि एकसाथ चुनाव और कार्यकाल फिक्स करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। इसके लिए अनुच्छेद-324 और 325 में संशोधन करना होगा। अनुच्छेद-324 में संशोधन के लिए राज्यों से पुष्टि लेनी होगी। अनुच्छेद-324 में संशोधन से एकसाथ चुनाव कराने और अनुच्छेद-325 में संशोधन से वोटर आई कार्ड के संदर्भ में की गई सिफारिश का रास्ता साफ होगा। अनुच्छेद-83 और 172 में संशोधन करने की सिफारिश भी की गई है। इसके तहत लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल के बारे में बताया गया है। इस संवैधानिक संशोधन को राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। कमिटी ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट में भी संबंधित बदलाव की सिफारिश की है।

3. अलग-अलग चुनाव का क्या बताया गया नुकसान?

कमिटी ने तमाम विशेषज्ञों और हितधारकों से बात करने के बाद सिफारिश की है। कमिटी ने कहा कि देश की आजादी के बाद शुरुआत में हर 10 साल में दो चुनाव होते थे। अब हर साल कई चुनाव हो रहे हैं। इस कारण सरकार, व्यवसायी, मजदूर, अदालतें, राजनीतिक दल, चुनाव के उम्मीदवार, सिविल सोसायटी के लोगों पर बड़े पैमाने पर बोझ पड़ रहा है। ऐसे में सरकार को एक साथ चुनावी चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी तौर पर मान्य तंत्र विकसित करना चाहिए।

4. कौन-कौन से चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई है?

कमिटी ने पहले फेज में लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एकसाथ कराने की सिफारिश की है। इसके बाद दूसरे फेज में इस चुनाव के 100 दिनों के अंदर नगर पालिका और पंचायत चुनाव के भी कराया जाए।

भंग किया जा सके और मध्यावधि चुनाव के बाद उसका टर्म लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक ही हो।

8. क्या एकसाथ चुनाव कराया जाना व्यवहारिक तौर पर सफल प्रयोग होगा?

आजादी के बाद चार चुनाव 1952, 57, 62 और 67 के चुनाव में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ ही हुए थे। लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल क्या होगा, त्रिशंकु की स्थिति में मध्यावधि चुनाव के बाद क्या स्थिति होगी इस तरह के तमाम सवालों का जवाब समिति के रिपोर्ट से साफ हो चुका है अब कुछ संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ेगी और अगर केंद्र सरकार संविधान संशोधन कर पाए तो एक देश, एक चुनाव का रास्ता साफ हो सकता है।

9. कितने दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया?

47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 ने एकसाथ चुनाव कराने का किया समर्थन। राष्ट्रपति को कमिटी ने 18625 पेज की रिपोर्ट सौंपी है। कुल 21558 नागरिकों की प्रतिक्रिया मिली। 80 फीसदी ने चुनाव एकसाथ कराने का समर्थन किया।

10. किन-किन विशेषज्ञों की राय ली गई?

कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व चीफ जस्टिस, हाई कोर्ट के 12 रिटायर्ड चीफ जस्टिस, चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और आठ पूर्व चुनाव आयुक्तों के साथ-साथ लॉ कमिशन के अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर आमंत्रित किया और उनके विचार मांगे। साथ ही फिक्की, आर्थिक मामलों के जानकारों के विचार भी जाने।

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