भू कानून व मूल निवास 1950 करने को लेकर आयोजित स्वाभिमान महारैली में उमड़ा भारी जनसैलाब, ये हैं मुख्य मांगें..
देहरादून। मूल निवास 26 जनवरी 1950 से घोषित किए जाने और प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर रविवार को देहरादून में आयोजित महारैली में जगह जगह से भारी जनसमूह सड़क पर उतरा। रैली में सामाजिक, लोक संस्कृति व राजनीति समेत अनेक क्षेत्रों के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस मौके पर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की गई। वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से शुरू हुआ ये आंदोलन अब सड़क पर विशाल जनसमूह का हिस्सा बन गया है। जिसमें उत्तराखंड के गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी समेत कई कलाकारों और सामाजिक संगठनों ने खुला समर्थन दिया है।
रैली में शामिल होने के लिए लोग विशेषकर युवा हाथों में तख्तियां और झंडे थामकर सुबह से ही परेड ग्राउंड में एकत्रित होने लगे और दोपहर को हजारों लोगों का हुजूम नारे लगाते हुए सड़क पर निकल पड़ा । परेड ग्राउंड से प्रदर्शनकारी रैली की शक्ल में कॉन्वेंट स्कूल से होते हुए एसबीआई चौक, बुद्धा चौक, दून अस्पताल, तहसील चौक होते हुए कचहरी स्थित शहीद स्मारक पहुंचें। इसके बाद यहां सभा का आयोजन किया गया। प्रदर्शनकारी तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में शिथिल किए गए भू कानूनों को फिर से बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं। प्रदेश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए रावत सरकार ने भू कानूनों को शिथिल करने का निर्णय लिया था ।
इस दौरान मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि यह लड़ाई उत्तराखंड की जनता की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई है। जो कि उत्तराखंड पृथक आंदोलन के बाद एक बार फिर सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह जन आंदोलन है, जिसका नेतृत्व उत्तराखंड की आम जनता कर रही है।
डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड की जनता अपने अधिकारों के लिए तब तक लड़ना जारी रखेगी जब तक कि मूल निवास प्रमाणपत्र के लिए 1950 को ‘कट ऑफ तारीख’ माने जाने तथा कड़े भू कानून को बहाल करने समेत उनकी सभी मांगें पूरी नहीं होतीं ।
डिमरी ने कहा कि सरकार को प्रदेश में 250 वर्ग मीटर तक ही भूमि खरीदने की व्यवस्था को बहाल करना चाहिए ।
पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने भूमि खरीद की सीमा 250 वर्ग मीटर निर्धारित करते हुए भू कानूनों को कड़ा कर दिया था । हालांकि, बाद में उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था।
इससे पहले, कांग्रेस सरकार ने 2003 में एक कानून बनाया था जिसके तहत 500 वर्ग मीटर से अधिक भूमि खरीदने के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक थी । बाद में 2007 में खंडूरी ने इस सीमा को घटाकर केवल 250 वर्ग मीटर कर दिया था ।
इस बीच, मूल निवास के मुद्दे पर राज्य सरकार ने अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर दी है ।
संघर्ष समिति की मांगें-
– सख्त भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।