उत्तराखंड का लोकपर्व इगास आज, आइए दिवाली के 11 दिन बाद मनाने की क्या है मान्यता
मसूरी। प्रदेश भर में आज इगास का लोकपर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इगास यानी बूढ़ी दीपावली को दीपावली के 11वें दिन एकादशी पर मनाने की परंपरा है। सरकार ने आज सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। तो चलिए जानते हैं इगास पर्व क्या है और इसकी मान्यता क्या है।
क्या है इगास
उत्तराखंड में दिवाली के दिन को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। जबकि दीवाली से 11 दिन बाद इगास यानी बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है।
ये है मान्यता
मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। कहा जाता है कि यहां पर लोगों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दिवाली के 11 दिन बाद इगास मनाई जाती है।
एक मान्यता यह भी
“बारह ए गैनी बग्वाली मेरो माधो नि आई, सोलह ऐनी श्राद्ध मेरो माधो नी आई।”
मतलब बारह बग्वाल चली गई, लेकिन माधो सिंह लौटकर नहीं आए। सोलह श्राद्ध चले गए, लेकिन माधो सिंह का अब तक कोई पता नहीं है। पूरी सेना का कहीं कुछ पता नहीं चल पाया। दीपावली पर भी वापस नहीं आने पर लोगों ने दीपावली नहीं मनाई।
जी हां मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले महाराजा महिपत शाह को तिब्बतियों से वीर भड़ बर्थवाल बंधुओं की हत्या की जानकारी मिली, तो बहुत गुस्से में थे। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना माधो सिंह भंडारी को दी और तिब्बत पर आक्रमण का आदेश दे दिया। वीर भड़ माधो सिंह ने टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार और श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों सेयोद्धाओं को बुलाकर सेना तैयार की और तिब्बत पर हमला बोल दिया। इस सेना ने द्वापा नरेश को हराकर, उस पर कर लगा दिया। इतना ही नहीं, तिब्बत सीमा पर मुनारें गाड़ दिए, जिनमें से कुछ मुनारे आज तक मौजूद हैं। इतना ही नहीं मैक मोहन रेखा निर्धारित करते हुए भी इन मुनारों को सीमा माना गया। इस दौरान बर्फ से पूरे रास्ते बंद हो गए। रास्ता खोजते-खोजते वीर योद्धा माधो सिंह कुमाऊं-गढ़वाल के दुसांत क्षेत्र में पहुंच गये थे।
तिब्बत से युद्ध करने गई सेना को जब कुछ पता नहीं चला, तो पूरे क्षेत्र में लोग घबरा गए। शोक में डूब गए। इतना ही नहीं माधो सिंह भंडारी के विरोधियों ने उनके मारे जानें की खबरें भी फैला दी थी। लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में लोगों ने 11 दिन बाद दिवाली मनाई गई।
भैलो को पूजते हैं लोग
खास बात ये है कि यह पर्व भैलो खेलकर मनाया जाता है। तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है।
बग्वाल के दिन पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है। कई ग्रामीण भैलो से करतब भी दिखाते हैं।
पारंपरिक लोकनृत्य चांछड़ी और झुमेलों के साथ भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू आदि लोकगीतों के साथ मांगल व देवी-देवताओं की जागर गाई जाती हैं।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को दी इगास पर्व की बधाई
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को इगास पर्व /बूढ़ी दीपावली की बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। इस अवसर पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी लोक संस्कृति एवं परम्परा देवभूमि की पहचान है। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य की लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा उस राज्य की आत्मा होती है, इसमें इगास का पर्व भी शामिल है। हमारे लोक पर्व एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सामाजिक जीवन में जीवंतता प्रदान करने का कार्य करते हैं।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने में सहयोगी बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संपूर्ण देश में सांस्कृतिक विरासत और गौरव की पुनर्स्थापना हो रही है, उसी तरह उत्तराखंडवासी अपने लोकपर्व इगास को आज बडे़ उत्साह से मना रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के अमृत काल में पंच प्रण के संकल्पों में से एक संकल्प यह है कि हम अपनी विरासत और संस्कृति पर गर्व करें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे लोग इगास पर्व पर अपनी परम्पराओं के साथ अपने पैतृक गांवों से भी जुड सके इसके लिये राज्य में इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की परम्परा शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति एवं लोक पर्वों से जुड़े इसके भी प्रयास होने चाहिए। मुख्यमंत्री ने प्रवासी उत्तराखण्डवासियों से भी अनुरोध किया कि वे भी अपने लोक पर्व को अपने गांव में मनाने का प्रयास करें तथा प्रदेश के विकास में सहभागी बने। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों की सुख-शांति एवं समृद्धि की भी कामना की है।